लगता क्यूं
हर दम
अधूरा अधूरा
जैसे कुछ भी
ना मिल पाया
पूरा पूरा
नहीं समझ पाता
कैसी
यह तलाश है
हर दम जैसे
एक अधूरी सी
प्यास है
अँधेरे में
चाँदनी की
और
धूप में जैसे
छाँव की आस है
सोचता हरदम
एक नया जहाँ
बसाने को
पर
अनगिन यादों की
पुरानी बस्ती से
निकल नहीं
पाता हूँ
जाना चाहता
एक नयी मंज़िल को
पर
पुरानी रहगुज़र
में ही
भटकता रह जाता हूँ
भटकाव यह
ले जायेगा
मुझे कहाँ
आज हूँ
मैं यहाँ
कल जाऊंगा
कहाँ
बहके बहके से
इन ख्यालों को
क्या कभी
समेट पाऊंगा
या
इन्हीं ख्यालों में
उलझ कर
इसी पार
रह जाऊँगा
और
जाना है
उस पार
बस वो
सोचता ही
रह जाऊँगा
इस कशमकश से
क्या कभी
निकल पाऊँगा ???
हर दम
अधूरा अधूरा
जैसे कुछ भी
ना मिल पाया
पूरा पूरा
नहीं समझ पाता
कैसी
यह तलाश है
हर दम जैसे
एक अधूरी सी
प्यास है
अँधेरे में
चाँदनी की
और
धूप में जैसे
छाँव की आस है
सोचता हरदम
एक नया जहाँ
बसाने को
पर
अनगिन यादों की
पुरानी बस्ती से
निकल नहीं
पाता हूँ
जाना चाहता
एक नयी मंज़िल को
पर
पुरानी रहगुज़र
में ही
भटकता रह जाता हूँ
भटकाव यह
ले जायेगा
मुझे कहाँ
आज हूँ
मैं यहाँ
कल जाऊंगा
कहाँ
बहके बहके से
इन ख्यालों को
क्या कभी
समेट पाऊंगा
या
इन्हीं ख्यालों में
उलझ कर
इसी पार
रह जाऊँगा
और
जाना है
उस पार
बस वो
सोचता ही
रह जाऊँगा
इस कशमकश से
क्या कभी
निकल पाऊँगा ???