कहना चाहता था
मैं
जाने क्या कुछ
पर
खो जाते जैसे
सारे शब्द
और
रह जाता बस
मौन
जिसे तुम थे
समझते
शायद ......
था समझता
आज़ाद पंछी
वो खुद को
उड़ान तो है भरी
उसने
आकाश में
पर है नहीं
उसको पता
कि
आज़ादी उसकी
है उसका एक
भ्रम
आना ही होगा
उसे लौट कर
वापस
उसी शाख पर
तोड़ पाएगा नहीं वो
बंधन
जो बांधे हैं
उसने खुद ही
जाने या अन्जाने