Thursday, November 2, 2017

पड़ाव !!

बदलती तारीखों के बीच
अभी अभी
वक़्त ने थपथपाया
कन्धा मेरा
और बतलाया...
कर लिया है पार
उम्र का
एक और पड़ाव



आईना देखता हूँ
बहुत सी इन
लकीरों के बीच
फिर से
अपना चेहरा
पहचानने की
कोशिश में
और उसमें वह
पुरानापन
खोजने की चाहत में
जो थे हम कभी


अक्सर
पुराने ख्वाब
अब भी
चले आते हैं
जिन्हें छोड़ आए थे
उम्र की किसी
पुरानी सड़क पर
वहां छोटी-छोटी
इच्छाओं के छोर
अब तक बाकी हैं


उम्र के इस
पड़ाव पर
बार-बार पीछे
लौटता है मन
जैसे कि यह
पचास जमा एक की
उम्र
एक स्थगन बिन्दु हो
और आगे
बढ़ते जाने के लिए
लाज़मी हो
पीछे मुड़ कर देखना
और टटोलना
अपना वज़ूद
कुछ बीत गए
लम्हों में.......