आज फ़िर
थामा है
दिल ने
यादों का दामन
बुझती हुई
लौ को
फ़िर
दहकाया है
आज फ़िर
बीते हुए
लम्हों को
जाते हुए
वक़्त से
चुराया है
आज फ़िर
छोड़ा है
आंसुओं ने
पलकों का दामन
दिल को
फ़िर
भूला हुआ
कोई
याद आया है
Wednesday, July 1, 2009
Tuesday, June 30, 2009
कहीं किसी रोज़ !!
कहीं किसी रोज़
ऐसा भी होता
हम उड़ते
पक्षियों जैसे
बादलों में
और
चाँद आशियाँ होता
जुगनुओं की
रोशनी से
सजता आसमाँ
और
फूलों से
महकता आशियाँ
तुम होते मैं होता
होता अपना आशियाँ
और
साथ होता
सागर का किनारा
दूर तक वीराना
तुम कहते
मैं सुनता
तुम गाते
और
साथ होता
लहरों का संगीत
अजीब है यह
पर
सपना है
दिल में कहीं
पूरा होगा जो
शायद
कहीं किसी रोज़
ऐसा भी होता
हम उड़ते
पक्षियों जैसे
बादलों में
और
चाँद आशियाँ होता
जुगनुओं की
रोशनी से
सजता आसमाँ
और
फूलों से
महकता आशियाँ
तुम होते मैं होता
होता अपना आशियाँ
और
साथ होता
सागर का किनारा
दूर तक वीराना
तुम कहते
मैं सुनता
तुम गाते
और
साथ होता
लहरों का संगीत
अजीब है यह
पर
सपना है
दिल में कहीं
पूरा होगा जो
शायद
कहीं किसी रोज़
तलाश !!
तलाश है
मन को
हर पल
किसी की
जिसे
ढूँढती है
नज़र
हर जगह
हर पल
शायद
हो कहीं
कोई मुझ सा
जो समझ सके
मेरा सूनापन
और शायद
देख सके
मेरे अन्दर का
वीरानापन
जहाँ हूँ मैं
अकेला
खामोश और तन्हा
मन को
हर पल
किसी की
जिसे
ढूँढती है
नज़र
हर जगह
हर पल
शायद
हो कहीं
कोई मुझ सा
जो समझ सके
मेरा सूनापन
और शायद
देख सके
मेरे अन्दर का
वीरानापन
जहाँ हूँ मैं
अकेला
खामोश और तन्हा
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