Tuesday, September 23, 2014

एक प्रश्न !!

सलाहें
दी थीं जो कल 
बुज़ुर्गों ने हमारे
असर उनका
हमारे आज से झांकता है

दुआएं
दी उन्होंने जो सारी
असर उनका
हमारी ज़िन्दगी से झांकता है

था अनुभव उनका
सारी ज़िन्दगी का
उन सलाहों में
था प्यार उनका
सारा
उन दुआओं में

सोचता एक पल
ठिठक कर मैं
क्यों नहीं सुनते
आज हम उनको
क्यों नहीं गुनते
आज हम उनको

था उनके पास जो भी
दिया उन्होंने हमको
लगा दी सारी
ज़िन्दगी अपनी
बनाने में हमको

आज क्यों नहीं है वक़्त
हमारे पास उनके लिए
कल थे जो हमेशा साथ
हर वक़्त हमारे लिए

आज हैं जो हम
उसके पीछे
हैं वो ज़िन्दगी
जो आज शायद
होकर अशक्त
जीवन के
अंत की ओर
निरंतर अग्रसर
जोहती बाट हमारे लिए ..........


परछाइयाँ !!

परछाइयों के पीछे
भागता हर  इंसान
जाने किस गफ़लत में
जीता हर इंसान

भूल जाता कि
परछाइयाँ
देती साथ
सिर्फ़ रौशनी में

अँधेरा होते ही
छोड़ जाती साथ
और रह जाता
तन्हा इंसान

अपने अपने
हिस्से का
अँधेरा जीता
हर इंसान

जानता है इस सच को
फिर भी
ना जाने क्यूँ  भरमाता
खुद को इंसान

भ्रम होता कभी तो
कि हैं वो इंसान
या हैं सिर्फ
परछाइयाँ......................


Friday, September 19, 2014

कभी कभी !!

सजती नहीं ज़िन्दगी
सिर्फ फूलों से
काँटे भी सजा देते हैं
ज़िन्दगी कभी कभी

मिलती नहीं खुशियां
सिर्फ बहारों से
दे जाते हैं पतझड़ भी
खुशियाँ कभी कभी

मिलता नहीं सुकून
हमेशा महफ़िलों में
मिलता है सुकून
वीरानों में भी कभी कभी

बुझा सकते हैं जो
समंदर भी नहीं
बुझती है वो प्यास
सहरा में भी कभी कभी

मिलता नहीं उजाला
सिर्फ सुबहों में
रात भी लेकर है आती
उजाला कभी कभी

मिलते नहीं जो हमसे
हकीकत में कभी
ख़्वाबों में मिल लेते हैं
उनसे कभी कभी ...................