तन थका है
मन व्यथित है
जीवन डगर पर
जैसे
कदम शिथिल हैं
एक दौड़ है
जो
खत्म ही नहीं होती
जितना भी
भागता हूँ
मंजिल
उतनी ही
दूर जाती
एक प्यास है
जो
बुझती ही नहीं
या
है शायदकोई
म्रगत्रष्णा
एक अजीब सा
सन्नाटा है
जैसे
खामोश हैं राहें
खामोश है जिंदगी
नहीं आती
कोई सदा
जैसे
हैं किसी वीराने में
अपनी चीखें भीखामोश हैं इस वीराने में जैसे निकली ही नहीं गले से तूफ़ान भीनिकला हैअभी अभीबहुत खामोशी सेजैसे
इस वीराने मेंवह भी डर गया होइस सन्नाटे सेऔर इसीलिएनिकल गया चुपचाप
कोई तो आवाज उठेगी तोड़ने
इस खामोशी कोजो दूर करेगी इस सन्नाटे कोइंतज़ार है उस सदा काजो आएगी इस वीराने से और
खत्म कर देगीइस खामोशी को तोड़ देगी इस अजीब से सन्नाटे को