Friday, August 1, 2008

खामोशी !!

एक अजीब सा
सन्नाटा है
जैसे
खामोश हैं राहें
खामोश है जिंदगी
नहीं आती
कोई सदा
जैसे
हैं किसी वीराने में

अपनी चीखें भी
खामोश हैं
इस वीराने में
जैसे
निकली ही नहीं
गले से

तूफ़ान भी
निकला है
अभी अभी
बहुत खामोशी से
जैसे
इस वीराने में
वह भी डर गया हो
इस सन्नाटे से
और इसीलिए
निकल गया
चुपचाप

कोई तो आवाज
उठेगी
तोड़ने
इस खामोशी को
जो
दूर करेगी
इस सन्नाटे को

इंतज़ार है
उस सदा का
जो आएगी
इस वीराने से
और
खत्म कर देगी
इस खामोशी को
तोड़ देगी
इस अजीब से
सन्नाटे को



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