अहसास .......
Friday, August 8, 2008
म्रगत्रष्णा !!
तन थका है
मन व्यथित है
जीवन डगर पर
जैसे
कदम शिथिल हैं
एक दौड़ है
जो
खत्म ही नहीं होती
जितना भी
भागता हूँ
मंजिल
उतनी ही
दूर जाती
एक प्यास है
जो
बुझती ही नहीं
या
है शायद
कोई
म्रगत्रष्णा
1 comment:
ज़ाकिर हुसैन
said...
शानदार रचना
बधाई!
August 22, 2008 at 7:37 AM
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1 comment:
शानदार रचना
बधाई!
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