Friday, July 11, 2008

जिंदगी !!

सोचता हूँ
कभी
खाली बैठे
जब मिलते
दो चार पल
फुरसत के
कि
कहाँ
आ गए हम

क्या पाया
क्या खोया
तब
कुछ हिसाब करता हूँ

जिंदगी का
लेखा जोखा
मुझको बताता है
कितनी खुशी
कितना गम
कितना सुख
कितना दुःख
पाया हमने

पर
क्या यही था
वह सब
जिसके लिए जीते आए
अब तक
क्या यही है
जिंदगी का सिला
जीने का मकसद

प्रश्न उठते है
पर
कोई उत्तर
नही पाता हूँ
बस
सोचता हूँ

3 comments:

Unknown said...

Very true.

Unknown said...

Excellent Manojji............

شہروز said...

आसान शब्दों में इतनी सहज-ग्राह्य और प्रभावी कविता भी लिखी जा सकती है , चकित हुआ.
आपके तीनों ब्लॉग देखे.डायेरी के अंश को दें, लेकिन पेज को न दें.पढने में दिक्क़त हुई.
आपने hamzabaan का लिंक दिया है, आभार-हार्दिक.