किया तो था
इज़हार
उन चंचल आँखों ने
और किया था
इक़रार
मेरे भी
खामोश लबों ने
पर
तोड़ ना पाये
हदें हम
अपनी अपनी
सीमाओं में ही
रहते हुए
किया था
समर्पित
दोनों ही ने
एक दूसरे को
मैं था सुनता
जो कह ना पाते
खामोश लब
तुम्हारे
और
मेरा मौन
तुम भी थीं
समझतीं........
इज़हार
उन चंचल आँखों ने
और किया था
इक़रार
मेरे भी
खामोश लबों ने
पर
तोड़ ना पाये
हदें हम
अपनी अपनी
सीमाओं में ही
रहते हुए
किया था
समर्पित
दोनों ही ने
एक दूसरे को
मैं था सुनता
जो कह ना पाते
खामोश लब
तुम्हारे
और
मेरा मौन
तुम भी थीं
समझतीं........
No comments:
Post a Comment