Thursday, June 10, 2010

अकेला !!

है इतनी भीड़
हूँ फिर भी
अकेला
रहता हूँ
शहर में
लगता फिर भी
वीराना
हैं लोग इतने साथ
दिल है
फिर भी
तन्हा
लिए तन्हा दिल
भटकता हूँ
इस वीराने में
देता हूँ
आवाज़
पर आती
वो भी लौट
टकरा के
इस सन्नाटे से
जैसे
रहना है
खामोश
हर सदा को
इस वीराने में
जैसे
रहना है
अकेला
हर किसी को
इस भीड़ में

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