बन कर सैलाब
टकराऊँगा जब
किनारों से
क्या तब
रोक पाओगे मुझे
तोड़ कर अपनी हदों को
छा जाऊंगा जब
अस्तित्व पर तुम्हारे
क्या तब
रोक पाओगे मुझे
मेरी उड़ान को
व्यर्थ बता
हँसते थे मुझ पर
बहा ले जाऊँगा जब
अपने ही संग
क्या तब
रोक पाओगे मुझे
स्वप्नों को अपने
सजा दूंगा जब
तुम्हारी पलकों में
जी लूँगा कुछ पल
अपने ही जीवन से चुरा कर
क्या तब
रोक पाओगे मुझे
कर लो प्रयास
इसे रोकने का
कर सको जितना
अंदाज़ा
इसके आवेग का
तो है नहीं
मुझे भी
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