इस दीपावली भी ना आ पाऊंगा
सोचा था दीपावली
इस बार घर मनाऊँगा
मात पिता भ्राता
सब होंगे साथ
और होंगे सब
नाते रिश्तेदार
रिश्तों की महक से
बच्चों को अवगत कराऊँगा
और उनके साथ
कुछ आतिशबाजी जलाऊँगा
पर ना मालूम था
कि जीवन के कार्य कलापों के
दायित्वों तले हार जाऊंगा
इस दीपावली भी ना आ पाऊंगा
रौनक होगी त्योहारों की
अब बाजारों में
खुशबू जानी पहचानी
होगी पकवानों की
धूम धडाका होगा
पटाखों का चहुँ ओर
मन मेरा होगा व्याकुल
फिर वहीं जाने को
बचपन की यादों में खो जाऊंगा
इस दीपावली भी ना आ पाऊंगा
वो खील बताशे
शक्कर के खिलौने
मिटटी के दीये
और दीयों की बाती
वो रौशनी की कतारें
वो फुलझड़ी वो अनार
वो चकरी और वो सुतली बम
एक बार फिर इन सबको
याद मैं कर जाऊंगा
और इनका विस्तृत वर्णन
बच्चों को दोहराऊंगा
इस दीपावली भी ना आ पाऊंगा
पर निश्चय ही
ह्रदय मेरा अकुलाएगा
यादों के सागर से
चुन कर कुछ मोती
बच्चों को दिखलाऊँगा
कैसी होती है
दीपावली वहाँ
उनको बतलाऊँगा
करूंगा कुछ रौशनी
यहाँ भी
पर क्या
अपने मन का अन्धकार
दूर कर पाऊंगा
इस दीपावली भी ना आ पाऊंगा
मैंने तो
फिर भी देखे
दीपावली के कई त्यौहार
वो मस्ती वो खुशियाँ वो धूम धडाका
वो रौशनी की बहार
सहेज रखी हैं आज भी
दिल ने मेरे
वो स्मृतियाँ वो यादें
अगली पीड़ी को तो शायद
मैं यादें भी ना दे पाऊंगा
क्या अगली दीपावली भी मैं जा पाऊंगा ??
2 comments:
Nostalgic feelings beautifully expressed.. parh kar achcha laga..and my hearty wishes for you to be at home during next Deepawali !
Nice one ... But I guess you compensated a bit by celebrating here . But yes its in no comparison to celebrating in India with family and friends - Ambika
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