Wednesday, December 8, 2010

लहरें !!

चंचलता है
स्वभाव मन का
जैसे होती
लहरें सागर की

निरंतर अग्रसर
लहर पर लहर
जैसे थमेंगी
पार कर
किनारों को ही

पर क्या
थमीं हैं लहरें
पार कर किनारों को

चाहे
पूरे चाँद की रात
उठती लहरें हो
या थमे
तूफ़ान के बाद की
देखा हमेशा
बेचैन
इन लहरों को

निरर्थक है लांघना
सीमाओं को
कभी समझ ना पायीं
ये लहरें

पर क्या
कभी समझ पायेगा
इसे
मेरा मन

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