Wednesday, December 8, 2010

लहरें !!

चंचलता है
स्वभाव मन का
जैसे होती
लहरें सागर की

निरंतर अग्रसर
लहर पर लहर
जैसे थमेंगी
पार कर
किनारों को ही

पर क्या
थमीं हैं लहरें
पार कर किनारों को

चाहे
पूरे चाँद की रात
उठती लहरें हो
या थमे
तूफ़ान के बाद की
देखा हमेशा
बेचैन
इन लहरों को

निरर्थक है लांघना
सीमाओं को
कभी समझ ना पायीं
ये लहरें

पर क्या
कभी समझ पायेगा
इसे
मेरा मन

Monday, December 6, 2010

साथ साथ !!

कुछ ना कहो
आज
बस साथ चलो मेरे
इन अजनबी रास्तों पर

ना तुम कुछ बताओ
ना मैं कुछ पूछूं
करने दो बात
बस
इस खामोशी को

चलते रहें
यूँ ही
साथ साथ
अपनी अपनी
तन्हाईयाँ लिए

तुम क्या हो
मैं कौन हूँ
रहने ही दें
आज
इन बातों को

सवालों के
दायरों से परे
अपनी अपनी
हदों में
चलते रहें
साथ साथ
दूर तक
इन अजनबी रास्तों पर

Thursday, November 18, 2010

कुछ लम्हे !!

कुछ पन्ने
आज फिर पलट गए
कई लम्हे
अतीत के
आँखों के सामने से
गुज़र गए

कई साथी पुराने
याद आये
वो जो बिछड़े
फिर ना कभी
मिलने आये

कई आवाजें
कानों में गूँज गयीं
ना जाने कितने
रस घोल गयीं

एक हंसी याद आई
खिलखिलाती हुई
दिल को भरमाती हुई
ना जाने कितने
किस्से कह गयी

बंद की आँखें तो
कुछ लम्हे
सामने आ कर
मुस्कुराने लगे
ना जाने किन
बिछड़े रास्तों पर
फिर से ले जाने लगे

सहम कर मैंने
खोल दी आँखें
सर को झटक कर
सामने से
उन लम्हों को हटा दिया
फिर से बंद कर
उन सारे पन्नों को
अपने रास्ते चल दिया

Thursday, October 21, 2010

इस दीपावली !!

इस दीपावली भी ना आ पाऊंगा

सोचा था दीपावली
इस बार घर मनाऊँगा
मात पिता भ्राता
सब होंगे साथ
और होंगे सब
नाते रिश्तेदार
रिश्तों की महक से
बच्चों को अवगत कराऊँगा
और उनके साथ
कुछ आतिशबाजी जलाऊँगा
पर ना मालूम था
कि जीवन के कार्य कलापों के
दायित्वों तले हार जाऊंगा
इस दीपावली भी ना आ पाऊंगा

रौनक होगी त्योहारों की
अब बाजारों में
खुशबू जानी पहचानी
होगी पकवानों की
धूम धडाका होगा
पटाखों का चहुँ ओर
मन मेरा होगा व्याकुल
फिर वहीं जाने को
बचपन की यादों में खो जाऊंगा
इस दीपावली भी ना आ पाऊंगा

वो खील बताशे
शक्कर के खिलौने
मिटटी के दीये
और दीयों की बाती
वो रौशनी की कतारें
वो फुलझड़ी वो अनार
वो चकरी और वो सुतली बम
एक बार फिर इन सबको
याद मैं कर जाऊंगा
और इनका विस्तृत वर्णन
बच्चों को दोहराऊंगा
इस दीपावली भी ना आ पाऊंगा

पर निश्चय ही
ह्रदय मेरा अकुलाएगा
यादों के सागर से
चुन कर कुछ मोती
बच्चों को दिखलाऊँगा
कैसी होती है
दीपावली वहाँ
उनको बतलाऊँगा
करूंगा कुछ रौशनी
यहाँ भी
पर क्या
अपने मन का अन्धकार
दूर कर पाऊंगा
इस दीपावली भी ना आ पाऊंगा

मैंने तो
फिर भी देखे
दीपावली के कई त्यौहार
वो मस्ती वो खुशियाँ वो धूम धडाका
वो रौशनी की बहार
सहेज रखी हैं आज भी
दिल ने मेरे
वो स्मृतियाँ वो यादें
अगली पीड़ी को तो शायद
मैं यादें भी ना दे पाऊंगा
क्या अगली दीपावली भी मैं जा पाऊंगा ??

Friday, October 15, 2010

सैलाब !!

बन कर सैलाब
टकराऊँगा जब
किनारों से
क्या तब
रोक पाओगे मुझे

तोड़ कर अपनी हदों को
छा जाऊंगा जब
अस्तित्व पर तुम्हारे
क्या तब
रोक पाओगे मुझे

मेरी उड़ान को
व्यर्थ बता
हँसते थे मुझ पर
बहा ले जाऊँगा जब
अपने ही संग
क्या तब
रोक पाओगे मुझे

स्वप्नों को अपने
सजा दूंगा जब
तुम्हारी पलकों में
जी लूँगा कुछ पल
अपने ही जीवन से चुरा कर
क्या तब
रोक पाओगे मुझे

कर लो प्रयास
इसे रोकने का
कर सको जितना
अंदाज़ा
इसके आवेग का
तो है नहीं
मुझे भी

Thursday, June 10, 2010

कभी कभी !!

कभी कभी
रातों को
नींद
नहीं जब आती
देखता हूँ
बस
खाली छत
और
याद करता हूँ
उन रातों को
जब
सोते थे
खुले आसमां के नीचे
और
गिनते थे तारे
वो छूकर जाना
उस शीतल बयार का
और कर जाना
तरो ताज़ा
तन और मन
दोनों को
और
कितनी कहानियां
याद आती हैं
जो सुनी थी
उस खुले
आकाश के नीचे
माँ से और मौसी से
याद आता है
वो माँ का
सुनाते सुनाते कहानी
सो जाना
और फिर
हमारा उनको जगाना
माँ कहती
अब सो जाओ
रात बहुत हो गयी
और
आँख बंद करते ही
वो गहरी नींद का आना
और आज
इस वातानुकूलित शयनकक्ष में
वो शीतल बयार कहाँ
वो कहानी वो थपकी कहाँ
और सब कुछ है
पर नींद कहाँ
तब एक करवट सोते थे
और आज
सिर्फ
करवटें बदली जाती हैं
अजनबी हैं
तारे भी
इस परदेस में
पड़ोसियों की तरह
दिखते हैं जो
सिर्फ
खिड़की से
देखता हूँ उनको
मैं
और सोचता हूँ
कभी कभी

अकेला !!

है इतनी भीड़
हूँ फिर भी
अकेला
रहता हूँ
शहर में
लगता फिर भी
वीराना
हैं लोग इतने साथ
दिल है
फिर भी
तन्हा
लिए तन्हा दिल
भटकता हूँ
इस वीराने में
देता हूँ
आवाज़
पर आती
वो भी लौट
टकरा के
इस सन्नाटे से
जैसे
रहना है
खामोश
हर सदा को
इस वीराने में
जैसे
रहना है
अकेला
हर किसी को
इस भीड़ में

Wednesday, May 5, 2010

क्षितिज़ !!

क्षितिज़
देखा है ना
लगता जैसे
हैं मिलते
वहाँ
ज़मीं आसमाँ
पर
है क्या
यह सही
या सिर्फ
नज़रों का
धोखा
होता है
कुछ
एसा ही
ज़िन्दगी
और
खुशियों
के साथ
दूर कहीं
नज़र आते
दोनों
साथ साथ
पर
है क्या
वोह सच
या सिर्फ
धोखा
नज़रों का