Friday, February 3, 2012

स्मृतियाँ !!

है फिर से
वही अहसास
बिछड़ने का
अपनों  से
और
जाने का
फिर से
किसी अन्जानी
रहगुज़र पर
    
कैसा है
यह अहसास
जैसे किसी
बंजारे का
या फिर
उस पंछी का
बसाना है जिसे
नीड़ अपना
फिर
किसी नए वृक्ष की
नयी शाख पर
  
फिर होंगे  
हर तरफ़
चेहरे अनजाने
और
अपरिचित नज़रें
ढूंढेंगी निगाहें
फिर किसी
अपने को    
बनाना होगा
फिर अपना
कुछ अन्जानों को
    
करता यही
हर बार
बार बार
बनाता नए रिश्ते
पालता उन्हें
कितने जतन से
और फिर 
चल देता 
किसी अन्जानी 
रहगुज़र पर 
उनकी अनगिन
यादें लिए 
  
तो होगी अब 
फिर एक 
नयी शुरुआत 
नयी जगह 
नए लोग 
नयी मुलाकातें 
नयी महफ़िलें 
फिर कुछ 
नए रिश्ते 
   
हर बार 
लेता थाह 
ज़िन्दगी की 
और पाता
कुछ मोती 
आजमाता
किस्मत को 
हर बार 
और 
देती वो साथ 
मिलते कुछ 
प्यारे  से लोग 
बन जाते कुछ 
मधुर से रिश्ते 
और फिर
समा जाते वो
स्मृतियों में

शायद
यही है जीवन चक्र
मिलना.... बिछड़ना....
और फिर मिलना......
बस बनती रहती हैं
स्मृतियाँ........

स्मृतियाँ
जो कभी
विस्मृत नहीं होतीं
रहती सदा
अंतरमन में
और
रखतीं  सबको
हमारे
आस पास............