Friday, December 16, 2016

जाने क्यूँ !!

जाने यहाँ क्यूँ आया
कुछ भी तो न मन भाया
पर वक़्त का ऐसा चक्र चला
फिर वापस ना जा पाया

देखता हूँ मेरे अपने
चल दिए हैं एक वक्र राह पर
समझाया बहुत उनको
पर उनको समझ ना आया

कुछ भी तो नहीं रहा
मेरे हाथ में
लगता जैसे
तिनका तिनका
हो कर बिखर गया
इस तूफ़ान में

और अब मुश्किल है
समेटना खुद को
या शायद
मैं चाहता भी नहीं ........