Wednesday, November 2, 2011

पड़ाव !!

आज ठहरा जो
एक पल को
उम्र के इस पड़ाव पर
देखा मुड़ कर पीछे

महसूस किया जैसे
जाते वक़्त का हर लम्हा
छोड़ गया अपना निशां
इस चेहरे पर
लकीरों की तरह

कोशिश करता
आज
ढूँढने की इनमें
गुज़रे वक़्त की
परछाइयाँ
पाता अनगिन यादें

वक़्त के साथ साथ
चलते चलते
छूट गया
क्या कुछ पीछे

रह गए कितने
संगी साथी
ना जाने कहाँ
कुछ हमको भूले
कुछ को हम भूले

कुछ गैरों को
बनाया हमने अपना
कुछ अपने
हो गए पराये

कभी जज्बा था जिसमें
बदलने का ज़माने को
वो ही बदल गया आज
ज़माने के साथ

देखा वक़्त को बदलते
कई रातों को ढलते
तो
कई सुबहों के
सूरज को उगते
मिली खुशियाँ अथाह
तो पाया कुछ गम भी

आ गया किस मक़ाम पर
और
अब यहाँ से जाना कहाँ
पता नहीं ??