Thursday, December 20, 2012

इंसाफ़ !!

वक़्त की दीवार पर
फिर उभरे  कुछ
दर्द के छींटे
और
कराहती कुछ चीखें

उठता शोर
नेपथ्य से
करती तिरस्कार
उमड़ घुमड़
चहुँ ओर  से
आज दुनिया.........

पर
फिर होगा वही
धुंधले पड़  जायेंगे
यह निशान
और
खामोश हो जाएँगी
यह चींखें
भूल जाएगी दुनिया
वक़्त के साथ
वक़्त के दामन के दाग

पर कल
फिर होगा यही 
फिर करेगा कोई
इस दामन को
दागदार

कोई विधि
न रोक पाती 
इस कुकृत्य को
इंसानियत के
इस जघन्य
अपराध को

कहाँ से आते
यह लोग
हैवानियत भी
जिनसे है शर्मसार
क्या ये हैं सिर्फ
शरीर
नहीं इनकी कोई
अंतरात्मा
जो टोकती नहीं
रोकती नहीं
तो फिर क्यों हैं
ये जिंदा

कोई विधि ना
कर सकेगी इंसाफ़
इंसानियत को ही
उठाने होंगे
खुद अपने हाथ
और
करना होगा
इंसाफ़

बताना होगा
नहीं है
जीने का हक
उनको
नहीं है जिनकी
आत्मा
नहीं है जिनको
कोई परवाह
इंसानियत की
जो कर सकते नहीं
आदर और सम्मान
इस जग में
जननी का ........

Tuesday, October 16, 2012

कशमकश !!

लगता क्यूं
हर दम
अधूरा अधूरा
जैसे कुछ भी
ना मिल पाया
पूरा पूरा

नहीं समझ पाता
कैसी
यह तलाश है
हर दम जैसे
एक अधूरी सी
प्यास है
अँधेरे में
चाँदनी की
और
धूप में जैसे
छाँव की आस है

सोचता हरदम
एक नया जहाँ
बसाने को
पर
अनगिन यादों की
पुरानी बस्ती से
निकल नहीं
पाता हूँ

जाना चाहता
एक नयी मंज़िल को
पर
पुरानी रहगुज़र
में ही
भटकता रह जाता हूँ

भटकाव यह
ले जायेगा
मुझे कहाँ
आज हूँ
मैं यहाँ
कल जाऊंगा
कहाँ

बहके बहके से
इन ख्यालों को
क्या कभी
समेट पाऊंगा
या
इन्हीं ख्यालों में
उलझ कर
इसी पार
रह जाऊँगा
और
जाना है
उस पार
बस वो
सोचता ही
रह जाऊँगा

इस कशमकश से
क्या कभी
निकल पाऊँगा ???

Tuesday, August 7, 2012

ज़िन्दगी !!

दरमियाँ हमारे
दूरियां चलती रहीं
ताउम्र हमराह
तन्हाईयाँ चलती रहीं

कुछ शिकवे उनके
कुछ गिले हमारे
बस
कुछ इसी तरह
रुस्वाइयाँ चलती रहीं

फासला उनसे
हर कदम
बड़ता रहा
साथ साथ
चलते रहे
पर
दूरियां बड़ती रहीं

रूप का
वो समंदर
आँखों से हम
पीते रहे
पर
तिशनगी लबों की
बड़ती रही

रोना आया
तो रो भी
न सके हम
बस
हिचकियाँ सी
बंधती रहीं

जिक्र आया
जब उनका 
तो कुछ भी
न कह सके हम
बस
सीने में एक
जलन सी
चुभती रही

मिलन की
आस में
बस इंतज़ार
पलता रहा
वक़्त
गुज़रता रहा
और
ज़िन्दगी चलती रही ..........

Thursday, May 3, 2012

कसक !!

फिर आज दिल को
तू  याद आया है
फिर आज
तेरी यादों ने
दिल को
बहलाया है

क्या हुआ जो
साथ नहीं तू मेरे
मेरे साथ तेरी
यादों का साया है

हुए आज
कितने बरस
मिले तुझसे
क्या यह
तुझको भी
याद आया है

थे  कभी तुम
साथ मेरे
इस अहसास ने
आज मुझे
फिर महकाया है

करते होगे
तुम कहीं
कभी तो
याद मुझे
इस भरम ने
हमेशा
दिल को
भरमाया है

अहसास
कब होते हैं
हाथ हमारे
ये तो
खुद-ब-खुद
दिल में
बस जाते हैं
कब किससे
कहाँ हो जाये
मोहब्बत
ये भी क्या कोई
समझ पाया है

थे नहीं वो तुम
थी एक म्रगत्रष्णा
इस बात को
हमने
इस दिल को
बहुत समझाया है

ना भूले हैं
तुझको
ना भूल पायेंगे
पता है
मुझको
अब ना कभी
मिल पायेंगे
इस ना मिलने की
कसक ने
बहुत सताया है
मेरे साथ तेरी
यादों का साया है

Thursday, April 5, 2012

माँ !!

देखा बदलते
वक़्त के साथ
लोगों को

देखा बदलते
रिश्तों को
अपनी सहूलियतों के
हिसाब से
निकलते उनके
मतलबों को

देखा बदलते
ज़िन्दगी की
रफ़्तार को
तेज़ होती जा रही
इसकी
आपा-धापी को

पर
है अभी भी
थपकियों की
गति वही
और
लय वही
और है
स्पर्श वही
ममता से
भरा भरा
दिल को
छूता हुआ

इस
बदलती दुनिया में
यूं तो बदला
बहुत कुछ
पर
है अभी भी
माँ की
लोरी वही
और
ममता वही

शुक्र है
तेज़ी से बदलते
इस जहाँ में
है अभी तक
माँ वही

Friday, February 3, 2012

स्मृतियाँ !!

है फिर से
वही अहसास
बिछड़ने का
अपनों  से
और
जाने का
फिर से
किसी अन्जानी
रहगुज़र पर
    
कैसा है
यह अहसास
जैसे किसी
बंजारे का
या फिर
उस पंछी का
बसाना है जिसे
नीड़ अपना
फिर
किसी नए वृक्ष की
नयी शाख पर
  
फिर होंगे  
हर तरफ़
चेहरे अनजाने
और
अपरिचित नज़रें
ढूंढेंगी निगाहें
फिर किसी
अपने को    
बनाना होगा
फिर अपना
कुछ अन्जानों को
    
करता यही
हर बार
बार बार
बनाता नए रिश्ते
पालता उन्हें
कितने जतन से
और फिर 
चल देता 
किसी अन्जानी 
रहगुज़र पर 
उनकी अनगिन
यादें लिए 
  
तो होगी अब 
फिर एक 
नयी शुरुआत 
नयी जगह 
नए लोग 
नयी मुलाकातें 
नयी महफ़िलें 
फिर कुछ 
नए रिश्ते 
   
हर बार 
लेता थाह 
ज़िन्दगी की 
और पाता
कुछ मोती 
आजमाता
किस्मत को 
हर बार 
और 
देती वो साथ 
मिलते कुछ 
प्यारे  से लोग 
बन जाते कुछ 
मधुर से रिश्ते 
और फिर
समा जाते वो
स्मृतियों में

शायद
यही है जीवन चक्र
मिलना.... बिछड़ना....
और फिर मिलना......
बस बनती रहती हैं
स्मृतियाँ........

स्मृतियाँ
जो कभी
विस्मृत नहीं होतीं
रहती सदा
अंतरमन में
और
रखतीं  सबको
हमारे
आस पास............