Tuesday, August 7, 2012

ज़िन्दगी !!

दरमियाँ हमारे
दूरियां चलती रहीं
ताउम्र हमराह
तन्हाईयाँ चलती रहीं

कुछ शिकवे उनके
कुछ गिले हमारे
बस
कुछ इसी तरह
रुस्वाइयाँ चलती रहीं

फासला उनसे
हर कदम
बड़ता रहा
साथ साथ
चलते रहे
पर
दूरियां बड़ती रहीं

रूप का
वो समंदर
आँखों से हम
पीते रहे
पर
तिशनगी लबों की
बड़ती रही

रोना आया
तो रो भी
न सके हम
बस
हिचकियाँ सी
बंधती रहीं

जिक्र आया
जब उनका 
तो कुछ भी
न कह सके हम
बस
सीने में एक
जलन सी
चुभती रही

मिलन की
आस में
बस इंतज़ार
पलता रहा
वक़्त
गुज़रता रहा
और
ज़िन्दगी चलती रही ..........