Thursday, December 20, 2012

इंसाफ़ !!

वक़्त की दीवार पर
फिर उभरे  कुछ
दर्द के छींटे
और
कराहती कुछ चीखें

उठता शोर
नेपथ्य से
करती तिरस्कार
उमड़ घुमड़
चहुँ ओर  से
आज दुनिया.........

पर
फिर होगा वही
धुंधले पड़  जायेंगे
यह निशान
और
खामोश हो जाएँगी
यह चींखें
भूल जाएगी दुनिया
वक़्त के साथ
वक़्त के दामन के दाग

पर कल
फिर होगा यही 
फिर करेगा कोई
इस दामन को
दागदार

कोई विधि
न रोक पाती 
इस कुकृत्य को
इंसानियत के
इस जघन्य
अपराध को

कहाँ से आते
यह लोग
हैवानियत भी
जिनसे है शर्मसार
क्या ये हैं सिर्फ
शरीर
नहीं इनकी कोई
अंतरात्मा
जो टोकती नहीं
रोकती नहीं
तो फिर क्यों हैं
ये जिंदा

कोई विधि ना
कर सकेगी इंसाफ़
इंसानियत को ही
उठाने होंगे
खुद अपने हाथ
और
करना होगा
इंसाफ़

बताना होगा
नहीं है
जीने का हक
उनको
नहीं है जिनकी
आत्मा
नहीं है जिनको
कोई परवाह
इंसानियत की
जो कर सकते नहीं
आदर और सम्मान
इस जग में
जननी का ........