Monday, June 27, 2011

विद्रोह !!

विद्रोह करता
मन मेरा
फिर फिर
मुझसे

चाहता मैं
तोड़ देना
दीवारें सारी
पर
जाता टूट
मैं ही
जैसे टूटता
ख्वाब कोई
अधूरा सा
जाने क्यों
जाता जीत
अन्धकार यह
मन का मेरा
मुझसे

अनगिन धागों का
यह जाल तेरा
उलझता जाता हूँ
निकलना चाहूँ
इनसे जितना
फिर फिर
बंधता जाता हूँ
इस डोर से
किस जनम का है
ना जाने
यह नाता तेरा
मुझसे