Wednesday, December 8, 2010

लहरें !!

चंचलता है
स्वभाव मन का
जैसे होती
लहरें सागर की

निरंतर अग्रसर
लहर पर लहर
जैसे थमेंगी
पार कर
किनारों को ही

पर क्या
थमीं हैं लहरें
पार कर किनारों को

चाहे
पूरे चाँद की रात
उठती लहरें हो
या थमे
तूफ़ान के बाद की
देखा हमेशा
बेचैन
इन लहरों को

निरर्थक है लांघना
सीमाओं को
कभी समझ ना पायीं
ये लहरें

पर क्या
कभी समझ पायेगा
इसे
मेरा मन

Monday, December 6, 2010

साथ साथ !!

कुछ ना कहो
आज
बस साथ चलो मेरे
इन अजनबी रास्तों पर

ना तुम कुछ बताओ
ना मैं कुछ पूछूं
करने दो बात
बस
इस खामोशी को

चलते रहें
यूँ ही
साथ साथ
अपनी अपनी
तन्हाईयाँ लिए

तुम क्या हो
मैं कौन हूँ
रहने ही दें
आज
इन बातों को

सवालों के
दायरों से परे
अपनी अपनी
हदों में
चलते रहें
साथ साथ
दूर तक
इन अजनबी रास्तों पर