Monday, February 11, 2008

धूप !!

धूप के तेवर
बड़े संगीन से हैं
पावँ के छालों
सफर रुकने न पाये

पावँ छोटे जिंदगी के
सफर लंबे
कौन जाने
है कहाँ
मंजिल हमारी
हो गया मुश्किल
बहुत
बच कर निकलना
हर तरफ़ बैठे
मचानों पर
शिकारी
छाँव की तासीर भी
चुभने लगी है
मन
कभी भी
हौसला चुकने ना पाए

कब तलक देते
तसल्ली
थके मन को
प्यास थोडी सी बुझाई
आसुओं ने
क्यूँ मिलन की राह
होती बहुत छोटी सी
औ विरह के छोर
थामे निर्जनों ने
दिन ढलेगा
शाम
आख़िर आएगी ही
भावना का यह शिखर
झुकने ना पाये

छाँव सुधियों की
कभी जब घेरती है
आहटों में
पल बसंती डोलते हैं
मरुस्थलियों में
लहरियां उठने लगी हैं
प्रीत के स्वर
माधुरी रस घोलते हैं
टूटते हालात में भी
मौन रिश्ता
धैर्य रखना
ये कभी मिटने न पाये

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