Tuesday, June 30, 2009

कहीं किसी रोज़ !!

कहीं किसी रोज़
ऐसा भी होता
हम उड़ते
पक्षियों जैसे
बादलों में
और
चाँद आशियाँ होता

जुगनुओं की
रोशनी से
सजता आसमाँ
और
फूलों से
महकता आशियाँ

तुम होते मैं होता
होता अपना आशियाँ
और
साथ होता
सागर का किनारा
दूर तक वीराना

तुम कहते
मैं सुनता
तुम गाते
और
साथ होता
लहरों का संगीत

अजीब है यह
पर
सपना है
दिल में कहीं
पूरा होगा जो
शायद
कहीं किसी रोज़




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