Wednesday, February 5, 2014

यायावर !!

यायावर सा
भटकता हूँ
जाने क्या
खोजता हूँ

अपनी ही पलकों में
चुभते
अपने ही सपने
किरच किरच
होकर
बिखरते सपने

अपने ही हाथों से
फिसलता
अपना ही
अस्तित्व
और
वक़्त के हाथों
खोती
मेरी अपनी ही
पहचान

भटकाव यह
ले जायेगा
कहाँ
खोज है किसकी
कब
समझ पाऊंगा

कशमकश में
उलझी है
ज़िन्दगी
जाना तो है
उस पार
पर
भटक रहा हूँ
मैं
इसी पार
ना जाने
कब से

कब मुक्त
हो पाऊंगा
इस कशमकश से
कब पाऊंगा
राह
उस मंज़िल की
जिस राह
चल कर
बन जाऊंगा
एक मुसाफिर
और
ना रह जाऊंगा
एक यायावर...........

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