कुछ कहा नहीं जाता
अपने ही घर में
कल तक हंसी ठहाके
जिसमें गूंजे
सुबह शाम रात को
तरस रहा है
कोना कोना
कब से
उन बीती बातों को
यह सहा नहीं जाता
अपने ही घर में
सूख चली है
नदी प्यार की
जाने तपिश
कहाँ से आई
तेवर बदल रहे
संबोधन
मुस्कानें हो गईं
परायी
अब रहा नहीं जाता
अपने ही घर में
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