जाने कैसे दोराहे पर
लायी है जिंदगी
खो दिया है जहाँ
खुद को
जिसे चाहा उसे पाया नही
जो पाया उसे चाह ना सके
इस कशमकश में
उलझा हूँ
एक तरफ है फ़र्ज़ राह में
जिससे मुँह मोड़ नही सकता
दूसरी तरफ है मेरी चाहत
जिसे छोड़ नही सकता
उलझन उलझती जाती है
जितना सुलझाता हूँ
इस दोराहे पर
कोई राह न पाता हूँ
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